कैंची धाम कुमाऊँ की पहाड़ियों में नैनीताल-अल्मोड़ा रोड पर 1400 मीटर की ऊंचाई पर भोवाली से 9 किलोमीटर की दूरी पर और नैनीताल से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक प्रसिद्ध हनुमान मंदिर है। यह स्थान सुंदरता और आध्यात्मिकता का एक आदर्श संयोजन प्रदान करता है। पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ और साथ में बहने वाली एक नदी, कैंची धाम उन लोगों के लिए एक स्वर्ग है जो शांति और शांति चाहते हैं।
मंदिर की स्थापना 1960 के दशक में एक स्थानीय और बहुत सिद्ध संत नीम करोली बाबा ने की थी। यह नीम करोली बाबा का एक आश्रम भी है, जिन्हें भगवान हनुमान का अवतार माना जाता है। भक्त आश्रम में भगवान हनुमान और नीम करोली बाबा की दिव्य उपस्थिति को महसूस करने का दावा करते हैं।
आश्रम को अपना नाम उसके स्थान के अनुरूप मिलता है जो दो पहाड़ियों के रूप में कैंची जैसी (हिंदी भाषा में कैंची) आकार बनाता है, जिसके बीच में आश्रम स्थित है, एक दूसरे को काटते और पार करते हैं। नीम करोली बाबा ने वर्ष 1973 में समाधि ली थी और तब से उन्हें भगवान हनुमान का अवतार माना जाता है।
हर साल 15 जून को नीम करोली बाबा के जन्मदिन पर, आश्रम में एक मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें स्थानीय लोगों और पर्यटकों दोनों की भारी भीड़ रहती है। समुद्र तल से 1400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, नैनीताल-अल्मोड़ा मार्ग पर स्थित यह आश्रम सुरम्य है और भारत के सबसे प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। आश्रम को शुरू में सोम्बरी महाराज और साधु प्रेमी बाबा के समर्पण के रूप में बनाया गया था, जो उस स्थान पर यज्ञ करते थे।
नीम करोली बाबा का जीवन परिचय:
उत्तराखंड में मौजूद कैंची धाम मंदिर की लोकप्रियता इतनी है कि यहां बाबा नीम करोली महाराज के दर्शन करने के लिए लोग देश-विदेश से आते हैं। बता दें, नीम करोली महाराज को कलयुग में भगवान हनुमान का अवतार माना जाता है।
1900 के आसपास उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गांव में ब्राह्मण परिवार में जन्मे लक्ष्मी नारायण शर्मा (नीम करोली बाबा) ने उत्तर प्रदेश के ही एक गांव नीब करौरी में कठिन तपस्या से मात्र 17 वर्ष की उम्र में सिद्धि हासिल की थी। इनके पिताजी का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था उन्होंने बाबा की शादी मात्र 11 वर्ष की उम्र में करवा दी थी।
गृहस्थ जीवन से विचलित होकर, इन्होंने शीघ्र ही घर त्याग दिया। फिर काफी समय तक इधर-उधर भटकते रहे। बाबा शुरुआती दौर में गुजरात के मोरबी से 35 किलोमीटर दूर, एक गांव में साधना की। यहां पर उन्होंने बहुत सारी सिद्धि हासिल की। यहां आश्रम के गुरु महाराज ने, उनका नाम लक्ष्मण दास रखा। बाद में महंत ने, उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। अन्य शिष्यों के विवाद के कारण, उन्होंने वह स्थान शीघ्र ही छोड़ दिया।
इसके बाद वह राजकोट के पास बवानिया गांव में आते हैं। एक तालाब के किनारे, हनुमान जी का एक मंदिर स्थापित करते हैं। यही वह तालाब में खड़े होकर घंटों तपस्या करते हैं। जिसके कारण, वहां पर लोग तलैया बाबा के नाम से पुकारने लगे। 1917 में एक संत रमाबाई को आश्रम समर्पित कर। वहां से चल पड़ते हैं। यहां से वह, मां गंगा से मिलने निकल पड़ते हैं।
नीम करोली बाबा के दो बेटे और एक बेटी थी उनका बड़ा बेटा अनेक सिंह अपने परिवार के साथ भोपाल में रहता है। और उनका छोटा बेटा धर्म नारायण शर्मा वन विभाग में रेंजर पद पर रहा जिनका हाल ही में निधन हो गया। बाबा ने 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में अपने शरीर का त्याग कर दिया थी।
माना जाता है कि बाबा जन्म से ही संत थे, जहां भी वो जाया करते थे हमेशा यज्ञ और भंडारा किया करते थे। उन्होंने आसपास कई हनुमान मंदिर भी स्थापित किए। निर्वाण से पहले उन्होंने दो आश्रम भी बनवाए, पहला आश्रम कैंची नैनीताल में है तो दूसरा वृन्दावन (मथुरा) में।
जब बाबा जीवित थे तब लोग उन्हे लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा, तिकोनिया वाले बाबा और तलईया बाबा के नाम से जानते थे।
नीम करोली बाबा के चमत्कार:
1. बाबा नीमकरोली की ट्रेन रोकने वाली घटना:
अंग्रेजो के समय की बात है जब बाबा मां गंगा मैया के दर्शन के लिए, टूंडला से फर्रुखाबाद जाने वाली ट्रेन के फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में सफर कर रहे थे लेकिन उनके पास टिकट नहीं था। लेकिन जब टीसी आया तो उसने बाबा को अगले स्टेशन नीम करोली में उतार दिया। बाबा का क्या था बाबा अपना चिमटा धरती में गड़ाकर बैठ गए तो फिर रेल के ऑफिसर्स ने रेल को चलाने के लिए कहा और गार्ड ने हरी झंडी दिखा दी लेकिन खून प्रयत्न के बार भी रेल थोड़ी सी भी आगे नहीं डिगी।
लेकिन जब भरसक प्रयास करने के बाद भी रेल नही बढ़ी तो एक लोकल मजिस्ट्रेट जो बाबा को जानता था उसने रेल ऑफिशियल से कहा की बाबा से माफी मांगकर उन्हे अंदर बैठा लो सम्मानपूर्वक और जैसे ही बाबा बैठे ट्रेन चल पड़ी तब से इनका नाम नीम करोली बाबा पड़ा।
2. जब शिप्रा का जल बन गया घी:
बाबा नीम करोली के धाम ‘कैंची धाम’ में अक्सर भंडारा चलता था जो कि आज तक चलता है। एक बार भंडारे के लिए घी की कमी हो गई, ऐसे में सेवक परेशान हो गए। सभी बाबा के पास पहुंचे और उन्हें भंडारे में घी कम पड़ने की समस्या बताई। बाबा ने भोजन में घी के बजाय शिप्रा का जल डालने की बात कही।
बाबा के कहा शिप्रा का जल क्या घी से कम है। बाबा के सेवक भी उनका आदेश मानकर कैंची धाम के बगल में बह रही शिप्रा से जल ले आए और भोजन में इस्तेमाल किया, लेकिन यह जल घी में परिवर्तित हो गया।
3. बाबा के चमत्कार से रुक गई बारिश:
हनुमानगढ़ी मन्दिर के निर्माण कार्य के दौरान एक दिन भारी बारिश होने लगी। बारिश बहुत तेज थी और रूकने का नाम नहीं ले रही थी, तब नीम करोली बाबा बाहर आए और काली जलभरी घटाओं को आकाश की तरफ देखते हुए बोले, ये बड़ी उग्र है, बड़ी उग्र है! तब महाराज जी ने ऊपर देखते हुये अपने दोनों हाथों से अपने विशाल वक्ष से कम्बल हटाते कुछ गर्जन के साथ बोले, “पवन तनय बल पवन समाना”। बस इतना कहते ही तेज हवाएं बादलों को उड़ा ले गयी और बारिश थम गयी। बाबा के इस चमत्कार से आसमान भी साफ हो गया।
4. बाबा के स्पर्श से जल गई बत्तियां:
एक बार भूमियाधार में कुछ माताएं बाबा के पूजन लिए आई थीं, लेकिन उस दिन बाबा आश्रम में नहीं थे। बाबा मोटर सड़क की द्वार पर बैठे थे, तब सभी माताएं बाबा के पूजन और दर्शन के लिए वहीं जाने का विचार करने लगी।लेकिन बाबा ने दूर से ही उन्हें हाथ हिलाकर लौट जाने का संकेत दिया।
बाबा जी के पास गुरूदत शर्मा भी बैठे थे। महिलाओं को निराश देखकर उन्होंने ने बाबा को दर्शन देने की प्रार्थना की। उनके कहने पर बाबा मान गए और उन्होंने माताओं को अनुमति दे दी और उन्हें जल्दी पूजा कर के जाने को कहा।
महिलाएं पूजा करने लगी लेकिन आरती के लिये वे दियासलाई (माचिस) लाना भूल गई। माताओं ने बाबा के पास बैठे गुरुदत्त शर्मा को समस्या बताई, लेकिन वे उनकी सहायता करने में असमर्थ थे। तब बाबा ने रूई से सनी बत्तियों को हाथ में लिया और ‘ठुलिमां ठुलिमां’ कहते हुये हाथ घुमाने लगे और एकदम से बत्तियां जल उठी। सभी यह दृश्य देखकर हैरान रह गए।
5. जब गंगाजल बना दूध:
1966 के प्रयाग में कुंभ मेले के कैंप में रात के समय, ब्रह्मचारी बाबा ने किसी दूसरे के भक्तों के कान में कहा, अगर इस समय गरमा-गरम चाय मिल जाती तो बहुत अच्छा होता है। लेकिन कैंप में दूध खत्म हो चुका था। जब बाबा जी को पता लगा तो उन्होंने कहा क्या चाय पिएगा? फिर भक्तों से कहा कि बाल्टी लेकर जाओ और गंगा मैया से एक बाल्टी दूध ले आओ। गंगा मैया से कहना कि हम दूध उधार लिए जा रहे हैं सुबह लौटा देंगे।
भक्त ने भी ऐसा ही किया। वह एक बाल्टी में गंगाजल भरकर ले लाया, उसे ढक कर रख दिया। अब बाबा जी के आदेश पर चाय का पानी चढ़ाया गया लेकिन दूध न होने के कारण सभी विचलित थे। लेकिन जब बाल्टी को खोला गया, तो वह पूरी दूध से भरी हुई थी, जिसकी चाय बनी। सुबह दूध आने पर, बाबा जी ने एक बाल्टी दूध गंगा जी में वापस डलवा दिया।
नीम करोली बाबा के भक्त:
बाबा के भक्तों में एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग, हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स तक भी शामिल हैं। कहा जाता हैं कि यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना पूर्ण होती हैं। एक समय एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स 1974 से 1976 के बीच आध्यात्मिक यात्रा के लिए भारत आए थे। जब वह कैंची धाम आश्रम पहुंचे तब बाबा समाधि ले चुके थे।
कहते हैं कि एप्पल के Logo का आइडिया उन्हें बाबा के आश्रम से ही मिला था। कहा जाता है कि करौली बाबा को सेब बड़े पसंद थे, उस दौरान बड़े चाव से इस फल को खाया करते थे, इसी वजह से स्टीव ने अपनी कम्पनी के लोगो के लिए कटा हुआ एप्पल चुना।
जब जुकरबर्ग भी फेसबुक के बेचने पर असमंजस में थे तब स्टीव जॉब्स ने उन्हें भारत की आध्यात्मिक यात्रा पर जाने की सलाह दी। अपने एक महीने के दौरे पर जुकेरबर्ग इस मंदिर में दो दिन रुके थे। यही नहीं, अपनी फिल्म ‘ईट, प्रे, लव’ की शूटिंग के लिए भारत आईं जूलिया रॉबर्ट भी नीम करोली बाबा की तस्वीर से इतनी प्रभावित हुई थीं कि उन्होंने हिंदू धर्म अपना लिया।
वर्ल्ड कप में शानदार परफॉर्मेंस के बाद विराट ने परिवार संग हाल ही में उत्तराखंड का रुख किया। विराट और अनुष्का का उत्तराखंड से काफी पुराना नाता है, जब भी समय मिलता है इंडस्ट्री के क्यूट कपल्स धार्मिक जगहों पर भी घूमने के लिए निकल जाते हैं। जिस तरह से विराट की फॉर्म वापस आई है, उसे देखकर न केवल उनके फैंस खुश हैं, बल्कि उनका भी कॉन्फिडेंस वापस लौटा है। कहा जा रहा है कि अनुष्का ने शायद विराट की फॉर्म लौटने पर मुराद मांगी थी और पूरी होने पर कपल्स कैंची धाम मंदिर पहुंचे थे।
रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर 'मिरेकल ऑफ़ लव' नामक एक किताब लिखी इसी में 'बुलेटप्रूफ कंबल' नाम से एक घटना का जिक्र है। बाबा हमेशा कंबल ही ओड़ा करते थे। आज भी लोग जब उनके मंदिर जाते हैं तो उन्हें कंबल भेंट करते हैं।
कैंची धाम की स्थापना:
1942 में नीम करोली बाबा उत्तराखंड में, भवाली से कुछ दूर एक छोटी सी घाटी के पास बैठे होते हैं, तभी उन्हें पहाड़ी पर एक व्यक्ति दिखाई पड़ता है। बाबा उसका नाम लेकर बुलाते हैं। जब वह व्यक्ति जिसका नाम पूरन था, उनके पास आता है, तो बाबा कहते हैं कि मुझे भूख लगी है, घर से कुछ खाना ला कर दो। वह व्यक्ति अचंभित होता है। मैं इन बाबा से पहली बार मिला, यह मुझे नाम से कैसे जानते हैं। इस पर, वह अपनी जिज्ञासा बाबा के सामने रखता है। बाबा कहते हैं, मैं तुम्हें कई जन्मों से जानता हूं। वह व्यक्ति घर में सभी को बाबा के बारे में बताता है। फिर घर मे, मौजूद दाल और रोटी लेकर बाबा के आता है।
बाबा भोजन ग्रहण करते हैं। फिर पूरन से कहते हैं, जाओ और कुछ गांव वालों को बुला कर ले आओ। बाबा कुछ गांव वालों के साथ, नदी पार कर दूसरी ओर जंगल में जाते हैं। फिर एक स्थान पर रुककर कहते हैं, यह जो पत्थर है इसे खोदकर हटाओ इसके पीछे गुफा है। पूरन और गांव वाले सोचते हैं हमने तो पूरा जीवन यहां बिताया, लेकिन कभी गुफा का आभास नहीं हुआ। ये बाहर से आए, बाबा को इस जगह के बारे में कैसे पता?
बाबा के कहने पर, खुदाई कर पत्थर हटाया जाता है। वहां एक गुफा मिलती है। बाबा बताते हैं कि गुफा में एक हवन कुंड है। सभी अंदर जाते हैं और बाबा के बताए अनुसार सभी कुछ जस का तस मिलता है।
बाबा बताते हैं कि यह कोई चमत्कार नहीं है, बल्कि यह स्थान हनुमान जी का है। इस स्थान को नदी के जल से, शुद्धिकरण करते हैं। फिर वहां पर हनुमान जी को स्थापित किया गया। तब बाबा बताते हैं कि यह स्थान सोमवारी बाबा की तपोस्थली है। फिर वहां हनुमान जी की स्थापना के साथ ही, बाबा का आना-जाना लगा रहता हैं।
1962 में कैंची धाम की स्थापना की जाती है। उस वक्त चौधरी चरण सिंह वन मंत्री थे। वह बाबा को कैंचीधाम के निर्माण के लिए जगह मुहैया करवाते हैं। जिस पर बाबा खुश होकर आशीर्वाद देते हैं। वह एक दिन भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे। जबकि चौधरी चरण सिंह की दूर-दूर तक प्रधानमंत्री बनने की कोई संभावना नहीं होती है। यह स्थान देश ही नहीं, वरन विदेशों तक ख्याति प्राप्त है। यह वही स्थान है जिसे आज हम कैंची धाम के नाम से जानते हैं। आज यहां देशभर के और विदेशी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
नीम करौली बाबा का देह त्याग:
बाबा का संपूर्ण जीवन, गृहस्थ और अध्यात्म में बराबर से बटा रहा। उन्होंने पूर्ण उत्तरदायित्व के साथ, इन दोनों धर्मों का बहुत निष्ठा के साथ पालन किया। बाबा ने 1935 में नीमकरोली धाम को अलविदा किया, फिर अपनी अध्यात्म व संत जीवन का सफर कैंची धाम में गुजारा। वहां उनके शिष्य पूर्णानंद तिवारी थे, जो हमेशा बाबा के इर्द-गिर्द ही रहते थे। यह वही पूर्णानंद तिवारी हैं, जिन्हें पहली बार 1942 में बाबा ने कैची धाम में दर्शन दिए थे।
9 सितंबर 1973 को, बाबा नीम करौली ने अपना सबसे प्रिय कैंची धाम त्याग दिया। बाबा ने दो महीने पहले से ही, अपने अनन्य भक्त पूर्णानंद जी को अपने से दूर करना शुरू कर दिया। जिस पर पूर्णानंद कुछ दुखी भी हुए। लेकिन उन्हें इसके पीछे की मंशा नहीं पता थी। 9 सितंबर को बाबा ने पूर्णानंद से कहा कि वह वृंदावन जा रहे हैं। उनका बहुत लंबा ट्रांसफर हो गया है, लेकिन वह साथ नहीं चलेंगे। बल्कि रवि खन्ना, जो एक एंग्लो इंडियन थे उनके साथ जाने का निश्चय किया।
बाबा ने काठगोदाम से ट्रेन के द्वारा आगरा के लिए प्रस्थान किया। आगरा पहुंचने से पहले ही वह ट्रेन से उतरे। रवि खन्ना जो उनके साथ थे, उनसे कहा कि मैं अपना देह त्याग रहा हूं। लोग मेरे अंतिम संस्कार के लिए, असमंजस में पड़ जाएंगे। उन सबको बता देना मेरा अंतिम संस्कार कैंची में न करके, वृंदावन में किया जाए। मेरी अर्थी को सबसे पहले कंधा पूर्णानंद ही लगाएगा। जब तक वो नहीं आ जाता तब तक मेरा अंतिम संस्कार ना किया जाए। इस तरह बाबा ने अपना देह त्याग दिया और उनके समाधि वृंदावन के आश्रम में बनाई गई। इसके बाद उनकी अस्थियां भी कैंची धाम लाई गई, जहां पर उनके दर्शन किए जा सकते हैं।
कैंची धाम कैसे पहुंचे?
कैंची धाम उत्तराखंड के अधिकांश महत्वपूर्ण कस्बों और शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। सड़क, ट्रेन या हवाईजहाज से कैंची धाम कैसे पहुंचे, इसके बारे में विस्तृत जानकारी नीचे दी गई है।
सड़क मार्ग द्वारा:
कैंची धाम आश्रम नैनीताल शहर से भवाली क्षेत्र में 18 किमी दूर स्थित है और मोटर योग्य सड़कों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप कैंची धाम तक ड्राइव कर सकते हैं या यहाँ पहुँचने के लिए टैक्सी कैब किराए पर ले सकते हैं।
रेल द्वारा:
ट्रेन से यात्रा करने वाले लोगों के लिए काठगोदाम निकटतम रेलवे स्टेशन है। कैंची धाम से 45 किमी दूर स्थित, कोई भी रेलवे स्टेशन से साझा या निजी टैक्सी किराए पर ले सकता है। दोनों जगहों के बीच बसें भी चल रही हैं।
वायु द्वारा:
हवाई यात्रियों के लिए, पंतनगर हवाई अड्डा निकटतम, 76 किमी दूर है। हवाई अड्डे से टैक्सी किराए पर लेकर आप NH 109 के माध्यम से कैंची धाम पहुँच सकते हैं।
कैंची धाम घूमने का सबसे अच्छा समय:
कैंची धाम मंदिर साल के हर समय अपने भक्तों का स्वागत करता है। यहाँ गर्मियाँ बहुत ही शानदार होती हैं, जो आगंतुकों और भक्तों के लिए एक सुखद समय बनाती हैं। यहां की सर्दियां बेहद खूबसूरत होती हैं क्योंकि आपको 0 डिग्री से कम तापमान में बर्फ से ढकी चोटियों की शानदार सुंदरता और इससे मिलने वाले आराम का अनुभव होता है।
हालाँकि, जाम सड़कों और भारी बारिश के कारण मानसून थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन बारिश से धोए जाने के बाद सभी रंग अपने शुद्धतम प्राकृतिक रूप में बाहर आने के साथ इस जगह का सबसे मंत्रमुग्ध कर देने वाला रूप प्रदान करते हैं।












