Mullingar Mansion : कहानी मसूरी के संस्थापक कैप्टन यंग के भूत की

 


मसूरी भारत के सबसे लोकप्रिय हिल स्टेशनों में से एक है जिसे किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण पर्यटकों के बीच काफी पसंद किया जाता है। मसूरी और उसके आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं जहां दोस्तों और परिवार के साथ जाया जा सकता है।


झरीपानी फॉल, लाल टिब्बा, केम्प्टी फॉल, क्लाउड एंड, जॉर्ज एवरेस्ट, कंपनी गार्डन आदि कुछ प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षण हैं। हालांकि, मसूरी में ऐसे स्थान भी हैं जहां आप जा सकते हैं जो आपको डरा देगा और आपको सवाल पूछने, डरने या डराने के लिए मजबूर करेगा।


उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में मसूरी को विश्व के सात प्रमुख शहरों में जाना जाता था। यहां वे सारी सुविधाएं मौजूद थीं, जो उस जमाने में इंग्लैंड में हुआ करती थीं। अगर यह सब संभव हो पाया था तो कैप्टन फ्रैडरिक यंग की वदौलत से। वह मसूरी आए तो थे अंग्रेजी सैना के अफसर बनकर, लेकिन यह जगह उन्हें इस कदर रास आई कि फिर पूरे 40 साल यहीं रहकर इसे संवारने में जुटे रहे।





कैप्टन फ्रेडरिक यंग (Founder of Mussoorie Hill):


कैप्टन फ्रैडरिक यंग का जन्म आयरलैंड के डोनेगल प्रांत में 30 नवंबर 1786 को हुआ था। 18 वर्ष की उम्र में वे ब्रिटिश सेना में भर्ती होकर भारत आ गए। यहाँ उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार में अहम भूमिका निभाई और कई भारतीय रियासतों को जीतने के साथ ही दक्षिण भारत में टीपू सुल्तान से युद्ध कर उन्हें भी पराजित किया। वर्ष 1814 मैं कैप्टन यंग का स्थानांतरण देहरादून कर दिया गया। तब यहां टिहरी रियासत और गोरखा सेना के बीच युद्ध चल रहा था।


युद्ध का समापन गोरखा सेना की हार के साथ 30 नवंबर 1814 को हुआ। गोरखाओं के यहां से हिमाचल जाने पर एक संधि के तहत टिहरी महाराज ने राज्य का आधा हिस्सा अंग्रेजों को दे दिया। यह हिस्सा ब्रिटिश गढ़वाल कहलाया।



इस युद्ध के बाद कैप्टन फ्रैडरिक यंग ने हिमाचल प्रदेश में भी गोरखा सेना से लोहा लिया। उन्होंने देखा की गोरखा सेना साहसी व वीर हैं, सो हुकूमत के सहयोग से पहले उन्होंने सिरमौर रेजीमेंट का गठन किया। और फिर गोरखाओं को अपना बनाकर उनकी रेजीमेंट खड़ी की। कालांतर में इस रेजीमेंट के सहयोग से अंग्रेजों ने देशभर की कई रियासतों पर अपना अधिकार जमाया।


कैप्टन फ़ैडरिक यंग के सेना में जनरल बनने के वाद वर्ष 1823 में कैप्टन यंग ने मसूरी को बसाने का कार्य शुरू किया। तब अंग्रेज मसूरी के जंगलों में शिकार खेलने आया करते थे। कैप्टन यंग को यह जगह हर दृष्टि से आयरलैंड की तरह ही लगी। यहां की खूबसूरती और जलवायु ने उन्हें मंत्रमुग्द कर दिया।



इसलिए उन्होंने ने मसूरी में डेरा डालने की ठान ली। सबसे पहले उन्होंने मसूरी के मलिंगर में शूटिंग रैंज बनाई और व 1825 में अपने लिए मुलिंगर हवेली का निर्माण कराया, यह हवेली क्षेत्र की सबसे पुरानी इमारत है। साथ ही उन्होंने अंग्रेजी अधिकारियों को मनाया कि यहां सैनिकों के लिए एक सेनिटोरियम बना लिया जाए। वर्ष 1827 में यह सेनिटोरियम बनकर तैयार हुआ और फिर अंग्रेजों ने यहां बसना शुरू कर दिया। मसूरी नगर पालिका के गठन में भी कैप्टन यंग का अहम योगदान रहा।




मुलिंगार हवेली की डरावनी कहानी:


कैप्टन यंग ने अपने घर मुलिंगर हवेली की हर एक दीवार और कोनो को अपने हाथों से सजाया था इसीलिए उन्हें अपने इस मेन्शन से बहुत प्यार था।44 वर्ष की अपनी सेवाओं से सेवानिवृत्त होने के बाद, वो मुलिंगर हवेली में ही रहने लगे और वो उस जगह को छोड़कर अपने देश यूरोप वापिस जाने को तैयार नहीं थे।


ब्रिटिश सरकार ने उन्हें काफी समझने की कोशिस की कि आप वापिस यूरोप अपनी फैमिली के पास चले जाईये यहां आप अकेले रहके क्या करेंगे लेकिन कैप्टन यंग उनकी बातों से सहमत नहीं थे।


लेकिन कुछ समय बाद कैप्टन यंग स्वतः ही वापिस अपने देश जाने को तैयार हो गए। जब वे वापिस अपने घर आयरलैंड जाते हैं तो वहां वे अपने परिवार को बताते हैं की उन्होंने मसूरी में एक घर बनाया है जिससे उन्हें बहुत प्यार है और वे चाहते हैं की सब मेरे साथ आयरलैंड छोड़कर उस घर में रहने चले।लेकिन उनके परिवार वाले उनकी इस बात को सिरे से नकार देते हैं, जिसके कुछ दिनों बाद कैप्टन यंग की हार्ट अटैक के कारण मृत्यु हो जाती है।



धीरे-2 कैप्टन का बनाया मुलिंगर मेन्शन खंडहर में तब्दील होने लगा। कुछ समय बाद कैप्टन यंग के परिवार वालों ने तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर से विनती की की कैप्टन यंग द्वारा बनाये गए मेन्शन की खास देख रेख की जाये और अगर संभव हो तो उस जगह पर कैप्टन यंग की याद में एक छोटा स्मारक बनवाया जाये।


तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने कैप्टन यंग के परिवार की बात को मानते हुए कुछ मजदूरों को मेन्शन के काम पर लगा दिया और उन्हें सख्त हिदायत दी गयी की इस मेन्शन को पहले की ही तरह साफ़ सुथरा और चमकदार बनाया जाये।


लेकिन नियति को सायद कुछ और ही मंजूर था, धीरे-2 जैसे मजदूर उस मेन्शन पर काम करने लगे तो उनके साथ अजीबों गरीब घटनाये घटने लगी, जैसे कभी कोई मजदूरों को नींद में खींच कर कहीं ले जाता था तो कभी वे वहाँ किसी के होने की शिकायत करने लगे।  धीरे-2 जब शिकायतें बढ़ने लगी तो लोकल ब्रिटिश सरकार ने उन मजदूरों कि सुरक्षा के लिए कुछ पुलिस अफसर नियुक्त किये।



अगली रात जब लोकल पुलिस और ब्रिटिश अधिकारी अपनी देख रेख में मेन्शन में काम करवा रहे थे तो उन्होंने भी वही सब महसूस किया जिसकी शिकायत मजदूर कुछ समय से कर रहे थे। अगली सुबह सभी लोग मेन्शन छोड़कर चले गए और वहां काम करने से इंकार कर दिया।  धीरे-2 यह बात आग की तरह फ़ैल गयी और मुलिंगर मेन्शन हॉन्टेड लोकेशन बन गया।


करीब 70 से 80 सालों तक यह जगह खंडहर बनी रही, लोगों ने वहां किसी के चीखने-चिल्लाने, किसी के चलने और किसी को वहां देखने का दावा करने लगे। 1930 के बाद जब यहां के गवर्नर बदले तब उन्होंने इस मेन्शन के आस पास की खाली पड़ी जगह पर बेघर लोगों के रहने के लिए कॉलोनी बसाई। धीरे-2 लोग उन कॉलोनियों में बसने लगे लेकिन कुछ ही समय बाद कॉलोनी के लोगों ने वहां किसी को देखने, किसी के चिल्लाने और कई बार अपने आप मेन्शन के अंदर खींचे चले जाने की शिकायतें की। धीरे-2 लोगों ने उन कॉलोनीज को खाली करना शुरू कर दिया।



इन घटनाओं के बाद उस समय की लोकल गवर्मेंट ने नाथूराम नाम के एक व्यक्ति को उस मेंशन की देख रेख के लिए गार्ड नियुक्त किया और उसे इस बात की हिदायत दी गयी की इस बात का ध्यान रखें की रात के समय मुलिंगर मेन्शन में क्या-2 घटनाये होती हैं और उसकी सारी रिपोर्ट समय-2 पर हमे देते रहें।


शुरुआत में तो सब कुछ सामान्य तरीके से चल रहा था परन्तु कुछ समय बाद नाथूराम ने अपनी रिपोर्ट में बताया की रात में उसने किसी व्यक्ति को घोड़े पर सवार होकर मेन्शन में आते और मेन्शन के चक्कर लगाते देखा है और कभी-2 वह व्यक्ति घोड़े से उतर कर मेन्शन के अंदर भी प्रवेश करता है।क्योंकि नाथूराम की झोपडी मेन्शन से कुछ दूरी पर थी तो जब तक वह उस जगह पर जहाँ उसने घोड़े पर सवार व्यक्ति को देखा था पहुँचता तो सब कुछ सामान्य हो जाता था।



नाथूराम की यह रिपोर्ट मिलने के बाद गवर्नर ने इस बात की छान बीन के लिए कुछ जाँच एजेंसियो के साथ लोकल पुलिस को नियुक्त किया। जिस दिन इस कमिटी को जाँच के लिए निकयुक्त किया गया ठीक उसके अगले ही दिन लोकल पुलिस को नाथूराम की लाश उसकी झोपड़ी में मिली।


इस घटना के बाद लोग इस मेन्शन के आस पास जाना तो दूर इसका नाम लेने से भी डरने लगे थे। लोगों का मानना है की जब कैप्टन यंग जब अपने परिवार को आयरलैंड छोड़कर वापिस आकर मुलिंगर मेन्शन में रहने को मना नहीं पाए तो उन्होंने अपना शरीर छोड़कर अपनी आत्मा के साथ मुलिंगर मेन्शन में रहना ही बेहतर समझा। 


लोगों का मानना है की आज भी यह जगह कैप्टन यंग की आत्मा से शापित है।




मुलिंगर मेन्शन के आसपास के प्रमुख आकर्षण:

1. लाल टिब्बा:


लाल टिब्बा मसूरी की सबसे ऊँची चोटी का सबसे ऊँचा स्थान और सबसे प्रसिद्ध स्थान है। प्रमुख पर्वत चोटियों के साथ-साथ रोमांटिक सूर्यास्त और सूर्योदय देखने के लिए पर्यटकों और यात्रियों के बीच लोकप्रिय, लाल टिब्बा लंढौर में डिपो हिल में स्थित है।



2. लंढौर छावनी बोर्ड:


लंढौर एक छोटा छावनी शहर है जो मसूरी के करीब स्थित है। यह देहरादून से लगभग 33 किमी की दूरी पर है और देहरादून और मसूरी के निवासियों के लिए एक आदर्श सप्ताहांत पलायन है।


लंढौर का सुंदर शहर गढ़वाल हिमालय की शांति और शांति से भरा हुआ है। एक स्पष्ट दिन पर लंढौर स्वर्गारोहिणी, बंदरपूछ, यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और कई अन्य हिमालयी चोटियों को नग्न आंखों से देखने के साथ 200 किमी तक का दृश्य प्रस्तुत करता है।


लंढौर एक ऐसा शहर है जो ब्रिटिश काल की याद दिलाता है और आज भी यह उस समय की शानदार वास्तुकला और संस्कृति को मजबूती से प्रदर्शित करता है। लंढौर एक छोटा सा शहर है जिसे कोई भी अपनी शांत भव्यता के चारों ओर तेज गति से चलने के दौरान देख सकता है।



3. केलॉग मेमोरियल चर्च:


केलॉग्स मेमोरियल चर्च मसूरी में लाइब्रेरी बस स्टैंड से 5 किमी की दूरी पर स्थित है। यह ऐतिहासिक वास्तुकला में से एक है जो लंढौर, मसूरी में कसमंदा महल में लंबे समय से खड़ा है।


चर्च को 1903 में एक प्रेस्बिटेरियन चर्च के रूप में बनाया गया था और यह लंढौर भाषा स्कूल का घर भी था जहां उस समय ब्रिटिश लोगों को हिंदी सिखाई जाती थी। चर्च का नाम रेव, डॉ. सैमुअल एच. केलॉग (1839-1899) के नाम पर रखा गया था, जो लंढौर में सक्रिय एक अमेरिकी प्रेस्बिटेरियन मिशनरी थे, जिन्होंने अंग्रेजी में हिंदी के व्याकरण पर एक किताब लिखी थी। भाषा स्कूल आज भी चलाया जा रहा है जिसे लंढौर भाषा स्कूल के नाम से जाना जाता है।



4. कंपनी गार्डन:


मसूरी में एक प्रमुख पिकनिक स्थान, कंपनी गार्डन द मॉल से 3 किमी की दूरी पर स्थित एक रंगीन उद्यान है। इसे "म्युनिसिपल गार्डन" या "कंपनी बाग" के रूप में भी जाना जाता है, इसे साल भर बड़ी संख्या में पर्यटक देखने आते हैं। कंपनी गार्डन में विभिन्न प्रकार के खूबसूरत फूल और एक मनोरंजन पार्क भी है।



5. गन हिल:


मसूरी की एक ऐतिहासिक और दूसरी सबसे ऊंची चोटी, गन हिल सुरम्य हिमालय श्रृंखला और दून घाटी देखने के लिए पसंदीदा जगह है। मसूरी का एक लोकप्रिय व्यू पॉइंट, गन पॉइंट द मॉल से 400 फीट ऊपर स्थित है और केबल कार द्वारा भी पहुँचा जा सकता है।



6. मसूरी विरासत केंद्र:


मसूरी हेरिटेज सेंटर नवंबर 2013 में एक ऐतिहासिक 180 साल पुरानी इमारत में खोला गया एक निजी उद्यम है। इसकी शुरुआत मसूरी और आसपास के क्षेत्रों की विरासत को प्रदर्शित करने और संरक्षित करने के उद्देश्य से हुई थी।


यह 1814 से मसूरी की ऐतिहासिक विरासत को संग्रहीत और प्रदर्शित करता है, जब इस क्षेत्र का पहला नक्शा सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा संकलित किया गया था, 1959 तक, जब एचएच दलाई लामा आए थे।



7. सिस्टर्स बाज़ार:


सिस्टर्स बाज़ार पाइन, ओक और देवदार के पेड़ों से भरा बाज़ार है। सिस्टर बाज़ार ब्रिटिश सैन्य अस्पताल की नर्स के लिए जाना जाता है, जो मसूरी पर ब्रिटिश शासन के दौरान इस जगह पर रहती थीं। वह ब्रिटिश सैन्य अस्पताल I.T.M के पास स्थित था।


बाजार का नाम उन ननों के नाम पर रखा गया है, जो इस क्षेत्र में स्थित ब्रिटिश छात्रावास में नर्स के रूप में सेवा करती थीं। यह क्षेत्र एक आवासीय कॉलोनी है जिसमें कई पुराने कॉटेज और कुछ दुकानें फैली हुई हैं। "बाजार" शब्द के विपरीत, यह क्षेत्र पुराने कॉटेज और कुछ दुकानों के साथ एक आवासीय कॉलोनी का अधिक है।



8. रस्किन बॉन्ड हाउस:


रस्किन बॉन्ड ब्रिटिश मूल के एक भारतीय लेखक हैं जो लंढौर में रहते हैं। वह भारत में बढ़ते बाल साहित्य में अपनी भूमिका के लिए पहचाने जाने वाले एक बहुत प्रसिद्ध लेखक हैं। उनका घर ऊपरी चक्कर से एक तेज ढलान पर स्थित है। उसका घर सुंदर और रंगीन BnB - Doma's Inn के ठीक बगल में है।



9. लंढौर की शीतकालीन रेखा:


विंटर लाइन एक दुर्लभ वायुमंडलीय घटना है जो विशेष परिस्थितियों में विकसित होती है जब ठंडी हवा के नीचे गर्म हवा फंस जाती है। इसे दुनिया में सिर्फ 2 जगहों पर देखा जा सकता है - स्विट्जरलैंड और मसूरी। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है!


लंढौर में सूर्यास्त के एक ऐसे समय के दौरान हम भाग्यशाली थे जब सूर्यास्त के दौरान पश्चिमी क्षितिज पीले, लाल और बैंगनी रंग के असंख्य रंगों में बदल गया।



10. जबरखेत नेचर रिजर्व:


जबरखेत नेचर रिजर्व भारत का पहला निजी रिजर्व है जो जबरखेत नामक गांव में स्थित है और प्रकृति प्रेमियों के लिए लंढौर में घूमने के लिए सबसे अच्छी जगह है। यह लंढौर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों - पक्षियों, स्तनधारियों और कीड़ों का घर है।


प्रबंधन जबरखेत नेचर रिजर्व में गाइडेड वॉक आयोजित करता है। गाइडेड वॉक प्रकृति रिजर्व के माध्यम से 2-3 घंटे की ट्रेक है जहां कोई तेंदुए, भालू, साही, लंगूर और हिरण को देख सकता है। दुर्भाग्य से, हमने कोई वन्यजीव नहीं देखा, लेकिन कुछ को उनके गति-संवेदक कैमरों में कैद देखा।




मुलिंगर मेन्शन कैसे पहुंचे:


लंढौर मसूरी के मॉल रोड पर पिक्चर पैलेस से मुश्किल से 3.5 किलोमीटर दूर है। मसूरी से लंढौर तक की सड़क बहुत खड़ी और संकरी है और अक्सर पीक सीजन के दौरान जाम हो जाती है। हर कार चालक इन सड़कों पर नहीं चल सकता। लंढौर पहुंचने के लिए माल रोड, मसूरी से निजी कैब किराए पर लेने की सलाह दी जाती है।


सड़क मार्ग द्वारा:

आसपास के सभी शहरों से कई निजी और सरकारी बस टूर ऑपरेटर मसूरी के लिए प्रस्थान करते हैं। मसूरी पहुंचने के लिए दिल्ली से बस यात्रा में लगभग 7-8 घंटे लगते हैं। विभिन्न कार रेंटल कंपनियां भी दिल्ली हवाई अड्डे/रेलवे स्टेशन से मसूरी के लिए काम करती हैं।


रेल द्वारा:

देहरादून स्टेशन मसूरी का निकटतम रेलवे स्टेशन है और सभी प्रमुख शहरों (दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, इंदौर, वाराणसी, इलाहाबाद, अमृतसर) से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है।


वायु द्वारा:

मुलिंगर मेन्शन लंढौर का निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा, देहरादून है। भारत के सभी प्रमुख शहरों से कई सीधी या वन-स्टॉप उड़ानें देहरादून के लिए चलती हैं। मसूरी जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से 60 किलोमीटर दूर है, और लंढौर मसूरी से 7 किलोमीटर दूर है।




मुलिंगर मेन्शन जाने का सबसे अच्छा समय:

साल भर सुहावने मौसम के कारण लंढौर की यात्रा साल के किसी भी समय की जा सकती है। भारत के अन्य हिस्सों में प्रचलित चिलचिलाती गर्मी से बचने के लिए ज्यादातर लोग गर्मियों (अप्रैल से जून) में लंढौर जाते हैं। जबकि कुछ ऐसे भी हैं, जो सर्दियों में बर्फ का आनंद लेने के लिए लंढौर आना पसंद करते हैं। हालांकि, ध्यान दें कि बर्फ की मात्रा के आधार पर, लंढौर की सड़क अवरुद्ध हो सकती है क्योंकि लंढौर की ओर जाने वाली कारें बर्फ से भरे ढलानों पर फिसलेंगी।


यदि आप शहर की शांति और वैराग्य का आनंद लेना चाहते हैं, तो किसी भी सप्ताह के दिन, विशेष रूप से सर्दियों (अक्टूबर-फरवरी) में लंढौर की यात्रा करें। आप क्षितिज की ओर शीतकालीन रेखा देखने के लिए भाग्यशाली भी हो सकते हैं। ऐसा नहीं है कि सप्ताहांत बहुत भीड़ या शोरगुल वाला होता है; लंढौर हमेशा शांत रहता है। लेकिन सप्ताहांत में आपको कुछ और वाहन और लोग मिल सकते हैं। गर्मियों में कुछ महीनों को छोड़कर, आप किस महीने में यात्रा करना चुनते हैं, इसके आधार पर श्रग या विंटर जैकेट ले जाने की सलाह दी जाती है।

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