उत्तराखंड वीर भड़ों का राज्य है। जितना यह प्राकृतिक रूप से सुंदर है, उतने ही वीर, मेहनती, साहसी यहाँ के निवासी होते है। उत्तराखंड के इतिहास में अनेक वीरों ने जन्म लिया जिनकी वीरता की गाथाएं आज हम पढ़ते है। वीरता के मामले में उत्तराखंड में महिलाएं भी पुरुषों से कम नही रही। यहां की वीरांगनाओं की कहानियां आज भी पहाड़ी अंचलों में सुनाई जाती हैं।
गढ़वाल की वीरांगना तीलू रौतेली के बारे में तो लोग काफी कुछ जानते हैं। आज आपको कुमाऊं की वीरांगना रानी धना के बारे में बताते हैं। कुमाऊं की रानी धना की कहानी काफी हद तक झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की तरह है।
वीरांगान रानी धना के शौर्य की कहानी:
सदियों पहले कुमाऊं में एक रियासत अस्कोट हुआ करती थी। रानी धना कुमाऊं में अस्कोट के राजा नार सिंह की रानी थी। और डोटी के शाशक कालीचंद रिश्ते में धना का मामा का लड़का लगता था। डोटी गढ़ वर्तमान नेपाल का पशिमी क्षेत्र को कहा जाता है।
राजा नार सिंह महत्वकांक्षी था, वह पूरे कुमाऊं पर कब्जा करना चाहते थे। उनकी नजर काली पार के डोटी इलाके पर भी थी। जहां धना के मामा के बेटे कालीचंद शासन कर रहे थे। नार सिंह ने अपनी मंशा धना को बताई तो उन्होंने पति को ऐसा करने से मना कर दिया और आगाह किया कि वहां से वापस जीत कर आना मुमकिन नहीं है इसलिए अपनी ये महत्वकांक्षा त्याग दो। पर नार सिंह को यह बात नागवार गुजरी। उसे लगा कि उसकी रानी अपने मायके वालों के सामने उसे कम आंक रही है । वह क्रोध में भरकर और जिद्दी होकर डोटी में आक्रमण की तैयारी करने लगा। राजा नार सिंह ने रानी धना को आश्वासन दिया कि वह जल्दी डोटी के राजा कालीचंद का सिर काटकर उसके लिए भेंट स्वरूप लाएगा। अगर नही आ पाया तो वही मृत्यु को गले लगा लूंगा।
तत्पश्चात नार सिंह डोटी में युद्ध के लिए निकल गया। वह तेज गति से सीमांत क्षेत्र में काली नदी के किनारे पहुँचा और लकड़ियों के सहारे काली नदी पार की। काली नदी पार कर वह तल्ला डोटी पहुँचा और वहां से धीरे धीरे उसने अपनी सेना के साथ मल्ली डोटी को कूच किया जहां कालीचंद का गढ़ था। मल्ली डोटी पहुंचकर उसने कालीचंद पर आक्रमण बोल दिया। युद्ध चला और कालीचंद की हार हुई। नरसिंह ने डोटी साम्राज्य पर आधिपत्य जमा लिया।
राजा नरसिंह की शक्ति देखकर कालीचंद उस समय तो चुपचाप बैठ गया। राजा नरसिंह अब वापस अपने रियासत को लौटने लगा। धीरे-धीरे वह अपनी सेना के साथ मल्ली डोटी से चला। लम्बा युद्ध और पहाड़ी रास्तों के सफर की थकान से वह रुक-रुक कर आगे बढ़ रहा था। तल्ली डोटी तक पहुंचते- पहुंचते वो काफी थक गया था और वहीं आराम करने के लिए रूक गया। कालीचंद को यही अवसर सही लगा। राजा और उसकी सेना को थकी अवस्था में ही पराजित किया जा सकता है। उसने मौका पाकर तल्ली डोटी पहुचकर राज नरसिंह पर हमला बोल दिया। राज नरसिंह और उसकी सेना अब थकान के कारण पस्त होने लगी। कालीचंद ने राजा को घेरकर धारदार हथियारों से उस पर हमला कर दिया। कालीचंद ने नरसिंह के दोनों हाथ काटकर उसे मौत के घाट उतार दिया।
यह खबर अस्कोट में रानी धना के पास पहुँच गई। रानी मजबूत ह्रदय और दृढ़ इच्छाशक्ति की धनी थी । उसने इस दुख की घड़ी में बिना घबराए, बिना हताशा के अपने पति की मौत का बदला लेकर उनके पार्थिव शरीर को काली पार लाकर उनकी भूमि में पंचेश्वर नदी में सारे क्रियाकलापों के साथ अंतिम संस्कार कराने का निश्चय किया।
अब चूँ कि एक स्त्री को राज्य यह अनुमति नहीं देता सो रानी ने अपने पति का राजसी बाना (राजसी पहनावा) पहन कर पगड़ी धारण करके, घोड़े पर सवार होकर डोटी राज्य से पति की मौत का बदला लेने निकल पड़ी । डोटी में पहुँच कर उसने कालीचंद की सेना पर आक्रमण कर दिया। दोनो ओर से भयंकर युद्ध शुरू हो गया। रानी धना ने अभूतपूर्व युद्धकौशल का परिचय देकर शत्रु सेना में हाहाकार मचा दिया।
अचानक दुर्भाग्यवश रानी शत्रुओं में घिर गई, उसकी पगड़ी फट गई और राजसी बाना भी फट गया जिससे वह पहचान में आ गई कि वह एक महिला है। कालीचंद ने उसे बंदी बनवा लिया और रानी का रूप सौन्दर्य देखकर, कालीचंद की बुद्धि भ्र्ष्ट हो गई। उसने रानी के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। रानी कुछ सोचने के बाद शादी के लिए मान गई।
रानी ने शादी के लिए एक शर्त रखी। रानी ने कहा कि राजा कालीचंद उसके पति का अंतिम संस्कार काली नदी के पार पंचेश्वर में करने में उसकी मदद करे नही तो राजा नार सिंह की आत्मा उन दोनों को तंग करेगी। कालीचंद ने उसकी ये शर्त मान ली।
अब जैसे ही कालीचंद रानी धना और कुछ अपने सैनिकों के साथ काली नदी पहुंचा तो काली नदी को वेग देखकर सैनिकों ने उसे पार करने से मना कर दिया। नदी पार करने की कालीचंद की हिम्मत भी नही हुई। रानी धना ने तब कालीचंद की तारीफ के पुल बांधकर उसे अपने साथ काली नदी पार करने के लिए उकसा दिया। कालीचंद रानी के रूप सौंदर्य में अंधा होकर और अपनी वीरता पौरुषत्व के जोश में रानी के साथ नदी पार करने को तैयार हो गया।
अब दोनो काली नदी को तुम्बियों के सहारे पार करने लगे। नदी में जाते ही कालीचंद की तुम्बी डूबने लगी क्योंकि कालीचंद की तुम्बी में छेद था, उसमे पानी भरने लगा था। कालीचंद की तुम्बी में छेद रानी धना ने बड़ी चालाकी से कर दिया था। अब कालीचंद काली नदी में डूबने लगा था, उसने मदद के लिए रानी को पुकारा। रानी अपनी तुम्बी के सहारे उसके पास गई और अपनी कटार निकाल कर उसने कालीचंद की गर्दन को कलम कर दिया। इस प्रकार कुमाऊं की वीरांगना ने अपने पति की मौत का प्रतिशोध लिया। कालीचंद को मारने के बाद रानी ने अपने पति के शव को अस्कोट ले जाकर पंचेश्वर में उसका अंतिम संस्कार किया और फिर स्वयं भी सती हो गई।




