Haunted School In Mussoorie : शिक्षक के भूत से प्रेतवाधित है यह स्कूल


उत्तराखंड अपनी सुंदरता, बर्फ से ढके पहाड़ों और लुभावने दृश्यों के लिए जाना जाता है अगर ऐसी खूबसूरत जगह पर आपको डरावनी जगह देखने को मिल जाए तो आप क्या करेंगे?


जी हां, देवभूमि में कई ऐसी भूतिया स्थान हैं, जहां लोग जाने से डरते हैंअगर आप इन गर्मियों में उत्तराखंड घूमने के लिए जाना चाहते हैं, तो इन जगहों पर जाने की गलती बिल्कुल ना करें


दुन‌ियाभर के सैलानियों को अपनी ओर आकर्ष‌ित करने वाली मसूरी ज‌ितनी खूबसूरत है उतनी ही भयावह है यहां की एक जगह। आप भी मसूरी जाएं तो भूलकर भी इस जगह पर न जाएं। आपने आजतक मसूरी की एक से एक खूबसूरत जगहों को देखा होगा, लेकिन ये भयावह जगह आपके रोंगटे खड़े कर सकती है।


आपने आजतक भूतों और चुड़ैलों की हज़ारों कहानियां सुनी होंगी और उन तमाम किस्सों ने आपको डराया भी होगा, लेकिन आज हम आपको जिन जगहों के बारे में बताने वाले हैं, उनकी कहानी आपको शायद रात में सोने भी न दे। हम बात कर रहे हैं मसूरी की भूतिया स्कूल की, जिसके बारे में आपने पहले कभी नहीं सुना होगा।







मसूरी के भूतिया स्कूल की कहानी:


यह स्कूल मसूरी से हाथीपांव जाने के रस्ते के बीच में पड़ती है। एक समय था जब इस स्कूल में आस पास के छेत्र के बच्चे यहां पढ़ने आते थे, लेकिन धीरे-2 यह स्कूल एक उजाड़ खंडहर से ज्यादा कुछ नहीं रह गया है। यह स्कूल तीन मंज़िला है जिसमे केवल सुनसान और खाली पड़े क्लासरूम ही रह गए हैं।


कभी-कभी हमे लगता है की डर केवल हमारे खाली मस्तिष्क की उपज है, लेकिन कभी-२ डर वास्तव में हमारे आस पास मौजूद रहता है। हमे यही अंतर समझने की जरुरत है कि कौन सा डर हमारे दिमाग कि उपज है और कौन सा वास्तव में मौजूद है।


इसी तरह कभी इस स्कूल का डर भी कभी इसी स्कूल में हुआ करता था केवल लोगों के दिमाग में नहीं बल्कि हकीकत में। आज इस स्कूल में केवल मातम जैसा सन्नाटा पसरा हुआ है और इसके दूर-दूर तक कुछ भी नहीं है।


समय था 1917 का जब लंबी देहर माइन्स का काम पुरे जोरों शोरों पर चल रहा था, उस समय मसूरी के आस पास ब्रिटिशर्स कॉलोनीज भी बसाई जा रही थी। धीरे-धीरे कॉलोनीज बसने के साथ ही वहाँ नवीन एजुकेशन का कल्चर भी आने लगा, तो आस-पास के गाओं के लोगों ने भी अपने इलाके में स्कूल बनवाने के लिए तत्कालीन सरकार से गुजारिस की। उनकी गुजारिश को मानते हुए तत्कालीन सरकार ने मसूरी से हाथीपांव जाने वाले रस्ते के बीच में एक स्कूल बनवाई ताकि आस पास के गाओं से इस आने वाले सभी बच्चों के लिए स्कूल की दुरी बराबर हो। इस स्कूल की जिम्मेदारी सेंट पॉल जोसफ को दी गयी।



सेंट पॉल जोसफ के बारे में कहा जाता था की वे एक ऐसे व्यक्तित्व के इंसान थे जो की न केवल मजबूत इरादों वाले व्यक्ति थे बल्कि आदर्शों पे चलने वाले भी थे। इनके देखरेख में 1924 में यह स्कूल का कार्य प्रारम्भ हो गया। करीब 10 से 12 सालों तक यह स्कूल खूब फला फूला, यहां से शिक्षित हुए बच्चों को आस-पास में ही तत्कालीन सरकार ने रोजगार मुहैया करवाया।


लेकिन 1934 के बाद से इस स्कूल में सब कुछ बदलने लगा। 1934 में इस स्कूल में बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने के लिए 34 से 35 साल की उम्र का फिंज़ी मोरिस नाम का एक टीचर आया। धीरे-धीरे स्कूल में अजीबों गरीब घटनाएं घटने लगी, जैसे कभी अचानक किसी विद्यार्थी की तबियत बिगड़ जाती तो कभी कुछ बच्चों को खून की उल्टियां होने लगती थीं। लगातार ऐसी घटनाएं घटने के कारण स्कूल के प्रिंसिपल सेंट पॉल जोसफ ने देहरादून से इन सब घटनाओं की जाँच करने के लिए एक जाँच एजेंसी को बुलवाया। जब वह जाँच एजेंसी के लोग स्कूल के अंदर इन सब घटनाओं की जाँच कर रहे थे तभी उनके एक साथी की अचानक से हार्ट-अटैक के कारण मृत्यु हो जाती है। इसके बाद स्कूल में हड़कंप मच गया, जिस कारण स्थानीय प्रशासन ने आनन फानन में इस स्कूल को कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया और सभी बच्चों को छुट्टी दे दी गयी।



स्कूल बंद होने के बाद प्रिंसिपल सेंट पॉल जोसफ ने स्कूल टीचर फिंज़ी मोरिस को ब्लैक मैजिक प्रैक्टिस करते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया, और उस टीचर पर कड़ी कार्यवाही करते हुए उसे तुरंत स्कूल से निकाल दिया। साथ ही स्थानीय प्रशासन ने उस टीचर को मसूरी इलाके के आस पास न दिखाई देने की सलाह दी। इस घटना के ठीक अगले ही दिन स्कूल प्रिंसिपल सेंट पॉल जोसफ स्कूल के बीचोंबीच मृत अवस्था में पाए गए, लेकिन कोई भी यह नहीं पता लगा पाया की कैसे उनकी मृत्यु हुई। स्थानीय प्रशासन ने तुरंत ही इस घटना का जिम्मेदार स्कूल टीचर फिंज़ी मोरिस को माना और उसे ढूंढ़ने का कार्य शुरू करवा दिया। ऐसा कहा जाता है कि स्कूल टीचर फिंज़ी मोरिस ब्रिटिश पुलिस के द्वारा पकड़ा गया और तुरंत ही उसे फांसी कि सजा दे दी गयी।


सेंट पॉल जोसफ कि मृत्यु के बाद इस स्कूल को चलाने के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ जिस कारण स्कूल को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने का ऐलान कर दिया गया।


करीब एक साल तक बंद रहे के बाद 1936 में एक बार पुनः इस स्कूल को शुरू किया गया। लेकिन उसी समय से वहां हॉन्टिंग कि घटनाएं होना शुरू हो गयी। कभी किसी को स्कूल में परछाई दिखती तो कभी अजीबों गरीब आवाजें बच्चों को डरा देती थी, तो कभी बच्चे क्लास में बैठे-बैठे अपने आगे किसी को चलते हुए देखे जाने का दवा करने लगे। ऐसी कई और डरावनी घटनाएं स्कूल के टीचरों के साथ भी घटने लगी थी।  जिसके बाद स्कूल को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया और बच्चों को दूसरे स्कूलों में भेज दिया गया।



सवाल यह है कि क्या यह स्कूल सच में भूतिया था यह बात बताने के लिए आज तो कोई नहीं मिलेगा लेकिन अब यह स्कूल बियावान और उजाड़ हो चुका है इसके आस पास कोई नहीं रहता है।





मसूरी के भूतिया स्कूल कैसे पहुंचे?


सड़क मार्ग द्वारा:

मसूरी से हाथीपांव जाने वाली रोड के बीच यह भूतिया स्कूल मसूरी से लगभग 2 कि.मी. कि दुरी पर स्थित है


मसूरी देहरादून, हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे शहरों से भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।


रेल द्वारा:

देहरादून रेलवे स्टेशन, लगभग 36 किमी दूर स्थित मसूरी के निकटतम रेलवे स्टेशन के रूप में कार्य करता है।


देहरादून नियमित ट्रेन सेवाओं से दिल्ली, लखनऊ, इलाहाबाद, मुंबई, कोलकाता, उज्जैन, चेन्नई और वाराणसी से जुड़ा हुआ है।



वायु द्वारा:

मसूरी का निकटतम हवाई अड्डा देहरादून में जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, जो लगभग 54 किलोमीटर दूर है, और नई दिल्ली के साथ दैनिक संपर्क प्रदान करता है।





मसूरी जाने का सबसे अच्छा समय:


मसूरी की यात्रा का सबसे अच्छा समय गर्मियों के दौरान होता है, क्योंकि यह चिलचिलाती गर्मी से एक उत्कृष्ट राहत प्रदान करता है।


अप्रैल-जून: सुखद जलवायु के कारण अप्रैल, मई और जून के महीने पीक सीजन के साक्षी होते हैं, जबकि जो लोग बर्फबारी देखने के लिए उत्सुक हैं उन्हें सर्दियों के दौरान मसूरी की यात्रा करनी चाहिए।


अगस्त-सितंबर: मानसून के मौसम में मसूरी में आमतौर पर भारी वर्षा होती है।

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